Diya Jethwani

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लेखनी कहानी -17-Oct-2022... आस्था...

क्या ताई... अभी भी लगी हुई हो... पिछले बीस दिनों से रोज़ दुकान पर आते जाते देखता हूँ आपको..। अरे अब तो बस करो ताई... कल तो धनतेरस भी आ गई...। 


अरे बिट्टू.... दिवाली की सफाई हैं.... इतना बड़ा घर हैं... समय तो लगता हैं...। 

हाँ ताई.. पता हैं... पर तुम सभी औरतें इतना सामान जमा ही क्यूँ करतीं हो की सफाई में कमर टूट जाए...। 

हाहाहा.... बिट्टू.... तु जब परिवार वाला बनेगा ना तब तुझे पता चलेगा...। हम औरतें ऐसे ही सामान जमा नहीं करती.... वक्त पर ये जमा की हुई... संभाली हुई चीजें बहुत काम आतीं हैं..। 

लेकिन ताई... ऐसी भी क्या सफाई करना की करते करते हाथ छिल जाए...। कमर टूट जाए....। वैसे भी आजकल कौनसे मेहमान आते जाते हैं... कौन देखता हैं..। छोड़ो अभी ताई..। आराम करो...। 

बेटा... ये सफाई में मेहमानों के लिए नहीं... लक्ष्मी मैया के लिए.. राम जी के लिए कर रहीं हूँ...। 

क्या ताई...... ये सब बेमतलब की बातें हैं....। अरे लक्ष्मी मैया को आना होगा तो वो साफ़ सुथरे मकानों को देखकर ही आएंगी क्या...। टूटे फूटे झोपड़ पट्टी वाले.... स्लम एरिया में रहने वाले लोगों के घरों में नहीं जाएंगी..? 


बिट्टू.. मैने ऐसा कब कहा... लेकिन क्या कभी तु उन लोगों के पास गया हैं.... अरे इन दिनों में तो वो भी अपने झोपड़ों.. अपने आशियानों को साफ़ करते हैं...। ये सिर्फ एक प्रथा या मान्यता नहीं.. बल्कि इसके पीछे एक कहानी हैं....। एक तर्क हैं...। 

हां हां पता हैं ताई.... पच्चिसो बार रामायण देख चुका हूँ...। लेकिन मैं ये सब नहीं मानता..। अपने शरीर से बढ़कर कुछ नहीं हैं...। शरीर में जान नहीं ओर घर को घिसते रहना...। ओर पूरी रामायण में ये कहाँ कहा गया हैं की अयोध्या साफ़ सुथरी होगी तो ही प्रभु घर आएंगे.....।मुझे तो आपको देख कर भी तरस आता हैं ताई.. तभी बोल रहा हूँ...। 

बिट्टू... वो उन सभी की श्रद्धा थीं.... कोई आदेश या जबरदस्ती नहीं...। बेटा सब कुछ करना.... लेकिन कभी किसी की आस्था का मजाक मत बनाना...। 


ताई... सब कहते हैं ईश्वर तो कण कण में हैं.... ये जो धूल मिट्टी आप घर से बाहर फेंक रहे हैं... उसमें भी होगा... फिर क्या ये ईश्वर का अपमान नहीं हैं...। 

बिट्टू... तु दुकान छोड़ और वकालत शुरू कर दे....। तेरे इस सवाल का जवाब भी हैं मेरे पास...ईश्वर हर कण में हैं... लेकिन ईश्वर भी एक घर में... एक ही माहौल में रहकर थक जाते हैं... इसलिए हम हर साल उन्हें दूसरे घरों में भी जाने का मौका देते हैं...। 

क्या ताई..आप कुछ भी बोले जा रहीं हैं...। 

हाँ.... वैसे ही जैसे तु बेवजह सवाल खड़े किए जा रहा हैं...। अगर तुझे मुझ पर इतना ही तरस आता हैं तो यहाँ खड़े होकर बहस करने से बेहतर हैं थोड़ा काम में हाथ बंटा ले...। 

अरे नहीं.... मुझे देर है रहीं हैं.... चलता हूँ...। 

बिट्टू के जाने के बाद ताई खुद से बोली..... आजकल ये ही सब हो रहा हैं.... सलाह सब देंगे... सवाल सब खड़े करेगें... टांग सब खिचेंगे.... लेकिन साथ और हाथ कोई नहीं देगा...। 


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7 Comments

आपका कहना सही है जब खुद मदद कर नही सकते? तो सवाल जवाब करके ऊर्जा क्यों और व्यय करवाते है? अगर जो मदद करने वाले सवाल जवाब करे तो समझ आता है कि उन्हें परवाह है इसलिए बोल रहे है। नही तो बस अपने आपको ज्ञानी साबित करने आ जाते है। आजकल के कथाकथित ज्ञानियो पर तमाचा है यह स्टोरी।

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Khan

25-Oct-2022 08:05 PM

Bahut khoob 💐🙏🌺

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Mahendra Bhatt

23-Oct-2022 04:15 PM

शानदार

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